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यद्वा॑ दि॒वि पार्ये॒ सुष्वि॑मिन्द्र वृत्र॒हत्येऽव॑सि॒ शूर॑सातौ। यद्वा॒ दक्ष॑स्य बि॒भ्युषो॒ अबि॑भ्य॒दर॑न्धयः॒ शर्ध॑त इन्द्र॒ दस्यू॑न् ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yad vā divi pārye suṣvim indra vṛtrahatye vasi śūrasātau | yad vā dakṣasya bibhyuṣo abibhyad arandhayaḥ śardhata indra dasyūn ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। वा॒। दि॒वि। पार्ये॑। सुस्वि॑म्। इ॒न्द्र॒। वृ॒त्र॒ऽहत्ये॑। अव॑सि। शूर॑ऽसातौ। यत्। वा॒। दक्ष॑स्य। बि॒भ्युषः॑। अबि॑भ्यत्। अर॑न्धयः। शर्ध॑तः। इ॒न्द्र॒। दस्यू॑न् ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:23» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:15» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) दुष्ट जनों के नाश करनेवाले (यत्) जो आप (पार्ये) पार में हुए (दिवि) कामना करने योग्य के निमित्त (वृत्रहत्ये) मेघ के हनन (वा) वा (शूरसातौ) शूर जनों से विभाग करने योग्य संग्राम में (सुष्विम्) उत्तम प्रकार उत्पन्न करनेवाले की (अवसि) रक्षा करते हो और (यत्) जो (वा) वा आप (दक्षस्य) बली (बिभ्युषः) भय करनेवाले का (अबिभ्यत्) भय करते हैं वह आप हे (इन्द्र) प्रतापी जन ! (शर्धतः) बलयुक्त से (दस्यून्) हठ से दूसरे के पदार्थ ग्रहण करनेवालों का (अरन्धयः) नाश करिये ॥२॥
भावार्थभाषाः - वही राजा होने को योग्य होवे कि जो युद्ध में अपनी सेना की रक्षा करे और शत्रु तथा चोरों का नाश करे ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स राजा किं कुर्य्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! यद्यस्त्वं पार्ये दिवि वृत्रहत्ये वा शूरसातौ सुष्विमवसि यद्यो वा भवान् दक्षस्य बिभ्युषोऽबिभ्यत् स त्वं हे इन्द्र ! शर्धतो दस्यूनरन्धयः ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) (वा) विकल्पे (दिवि) कमनीये (पार्ये) पारभवे (सुष्विम्) सुष्ठु सोतारम् (इन्द्र) दुष्टविदारक (वृत्रहत्ये) मेघस्य हननमिव (अवसि) रक्षसि (शूरसातौ) शूरैर्विभक्तव्ये सङ्ग्रामे (यत्) यः (वा) (दक्षस्य) बलयुक्तस्य (बिभ्युषः) यो बिभेति तस्य (अबिभ्यत्) बिभेति (अरन्धयः) हिंसय (शर्धतः) बलतः (इन्द्र) (दस्यून्) बलात् परस्वाऽऽदातॄन् ॥२॥
भावार्थभाषाः - स एव राजा भवितुमर्हेद्यो युद्धे स्वसेनां संरक्षेच्छत्रूंस्तेनांश्च हन्यात् ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो युद्धात आपल्या सेनेचे रक्षण करतो व शत्रू आणि चोरांचा नाश करतो तोच राजा होण्यायोग्य असतो. ॥ २ ॥